कत्थअइन बकसोर (व्याकरण का परिभाषा) :
कत्थअइन आ कमहड़ (आलो) तली एकदा ठउका दाव-दाव कत्था कच्छनखर आ अरा टूड़ा-बचा अख़तई अद्दीन कत्थअइन बअनर!
(व्याकरण वह शास्त्र है जो शुद्ध-शुद्ध भाषा बोलने और लिखने-पढ़ने की जानकारी कराता है उसे व्याकरण कहते है।)
कत्थअइन लूर घी आ खंदहा तली, एका अइय्या एकअम कत्था (भाषा) गहि पत्त नू गड्डी गूटी गुनअर अदि गहि मनचका अरा दाव रूपे चीतारई, कत्था गहि हुरमी ड़ाड़ी (अंग) तोड़, बक, बकपोर बकपून, गुट्ठी नू घोखना मनी ।
कत्थन सुपट अरा ओंटा रूपे नू उइय्या गे कत्थअइनन थिथाबअना (अध्ययन) अकय चाड़ रई ।
“कत्थ अइन” गहि ड़ाड़ी (व्याकरण का अंग)
- तोड़ घोख (वर्ण विचार)
- वक (शब्द)
- बकपून (वाक्य)
तोड़ (वर्ण)
'तोड़' आ मूली हहसन बअनर एकदा ही खंडा पुल्ली मनाः एकासे का अ, उ, क, ख, एन्नेम। (वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं जिसका खण्ड न हो सके, जैसे अ, उ, ए, क, ख, ग, आदि) 'दई' बक नू एंड हहस मिन्दरई 'द' अरा 'ई'। पढे थिथगार घोखआ खने इवड़ा ही हूँ एंड-एंड खंड खंड़ा मना उंग्गी। 'द' नू द अरा 'अ एंड हहस र ई एन्नेम 'ई' नू हूँ 'इ' अरा 'इ' एंड हहस र ई इलड़ा द, अ, इ, घी नाम खंड़ा पोल दत नना, आवंगे इबड़ा मूली हहस तली इ दिनुम तोड़ बअनर।
तोड़ एंड बरन ही मनी (वर्ण दो प्रकार के होते हैं)
- सरह तोड़ (स्वर वर्ण)
- हरह तोड़ (व्यंजन वर्ण)
सहर तोड़ (स्वर वर्ण):
एका हहस बई ती सर ले बेगर अटकरअम उर अदिन सरह तोड़ बअनर! कुंडुख नू दोय ओंद सरह तोड़ र’ई’ (कुंडुख ग्यारह स्वर वर्ण है।)
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ ए, ऐ, ओ, औ, अं
सरह तोड़ हूँ एंड गोटंग मनी
(स्वर वर्ण भी दो प्रकार के है)
सन्नी सरह (हस्व स्वर)
दिगहा सरहह (दीर्घ स्वर)
- सन्नी सरह (हस्व स्वर) अ, इ, उ, ए, ओ, अं – 6
- दिगहा सरहह (दीर्घ स्वर) आ, ई, ऊ, ए, ओ – 5
नोट: कुँडुख नू ऐ, औ ( अरा तै) मल मनी, इदि गहि उइजि नू अय, अरा, अउ, टूड़ना मनी; एकासे का
अय- अयलअना, नम्हय, तम्हय, एम्हय निंग्घय, नियन, बिदियन
अए- अएना, कएन, चएन, बरेएन, बुझरेएन चंएना मेर मेनएन बेएन अनिदन मेख़ेएन
अव- अवलअना, अंवखना, तवना, अबेरन
अउ- अड़सांगा, अउला, अउड़का, चउगुड़दी, चमड़ी, चउकीदार, चउरीसीया
सरह ही फुरचअना (स्वर के उच्चारण)
सरह ही फुरचअना एंड्बरन गहि मनी) खुड्डी; (स्वर के उच्चारण दो प्रकार का होता है) :
(1) बइता (निरनुनासिक)
(2) मुंइता (अनुनासिक)
- बइता (निनुनासिक) : बई ती फुरचारना आबो सहरतोड़न बइता बअनर (मुँह से बोले जाने वाले स्वर वर्णों को निरनुनासिक कहते हैं) एकासे का : असन, इसन, अदिन, इदिन
- मुंइता (अनुनासिक) : एका सरह गहि फुरचरना मुंई ती मनी अदिन मुंइता बअनर। (जिस स्वर का उच्चारण नाक से होता है उसे अनुनासिक कहते हैं।) मुंइता फुरचना हूँ एंड वरन ही मनी;
(क) बई अरा मुंई एंडो ती फुरचरई आद एन्ने मनी: आँच, अँगली, आँव, आँवला, आँमखी,
(ख) एकदा नीदि मुंइती एकला ती फुरचरई आद एन्ने मनी : कंक कंड्डो, गंग्गा, गंड्डा, मंड्डी, बंकी, किंको (जानवर), टोंका (टांड़)
तोड़पून (वर्णमाला )
तोड़ गहि तरपांति डींढ़न तोड़पून बअनर। (वर्णों के क्रम बद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं।) सरह गीह खंड़ा मुठन चिन्हन (रूपचिहो) सहड़ा बअनर (स्वर के खंडित रूपचिह को मात्रा कहते हैं)
एकासे का
सरह अ, आ, इ, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, ओ, अं
अ गहि सहड़ा माल मनी। ‘अ’ सरह हरह नू संग्गे मनी कली एकासे का
क्+अ=क,
प्+अ=प
हुरमी सरह गहि सहड़ान तरपइती क् गर्न संग्गे किया चिअतारा लगी
क्+अ =क,क्+आ=काक्+इ=कि,क् +ई=कीक् +उ=कु,घक्+ ऊ=कूक्+ ए=के,क्+ ऐ=कै,क्+ ओ=कोक्+ औ=कौ,क्+अं =कं,
हरह तोड़ (व्यंजन वर्ण)
ए का हहस सर्र से मल उरखर बई नू असन-इसन मूड्नुम उरखी अरा बेगर तोड़ ही सहड़ा ती मना पुल्ली अदिन हरह तोड़ (व्यंजन वर्ण) बअनर कुंडुख नू हरह तोड़ मन्दी नाख (34) मनी;
हरह तोड़
'क' पाँति-( क वर्ग) क,ख,ग,घ, डं - 5 'च' पाँति-( च वर्ग) च,छ,ज,झ, अ - 5 'ट' पाँति -( ट वर्ग) ट,ठ,ड,ढ,ण - 5'त' पाँति -( त वर्ग) त,थ,द,ध,न - 5प' पांति-( प वर्ग) प,फ,ब,भ,म - 5य,र,ल,व,स - 5ह, ड़,ढ़,ख़ - 4कुल योग-34
हरह तोड़न मूंद खंदहा नू खइट्टका र॑ ई,
(व्यंजन वर्ण को तीन भाग में बाँटा गया है।)
- (1) एंवसरना (स्पर्श)
- (2) मझीतल (अन्तःस्थ) अरा
- (3) उम्हें (उष्म)
1-एंवसरना (स्पर्श) :-
एक हरह मेलखा, तवला, कवला (तलवा ती मंइय्या), पल्ल अरा सुमड़ा लवटो गहि एंवसरना ती फुरचरई अदिन एंवसरना हरह बअनर। अदिन ख़टरका हरह हूँ बअनर एन्देर गे का पंचे धरा (पाँति) नू खइट्टका र ई। एंवसरना तोड़ एन्ने र’ ई;
2 मझीतल (अन्तःस्थ) :-
(अन्तःस्थ) : य, र, ल, अरा व, न मझीतल बअनर! इबड़ा सरह अरा हरह गहि मझी नूर’ ई, अवंगे ‘मझीतल’ बातारई। इबड़ा गहि फुरचरना ततख़ तलवा, पल्ल अरा सुमड़ा / लवटो ही हेन्दे सटरना ती मनी। पांहे साँस हो अना नू थोड़े हूँ मल अटकना (रोकरना) मनी। एकासे का – य, र, ल, व!
3 उम्हें (उष्म) :-
इदि घी फुरचरना रगदारका घीसीयारते उम्हें ताका ती मनी, अवंगे इदिन उम्हें बातारी। एकासे का- स, ह, ख। कुँडुख नू मूंद, गोटंग तोड़ नू किय्या टिप्पा चिअर टूड़तारई। एकासे का – ख़, ड़, ढ़।
जुदुरका हरह झोपा / धोपा (व्यंजन गुच्छा) :
हरह ही एन्ने संग्गे नू मिलना अरा संग्गे-संग्गे मना रूड़अन हरह झोपा बअनर एकदा जुटूरअर कब कमई, (व्यंजनों के ऐसे समुदाय को व्यंजन गुच्छा कहते हैं,
जो संयुक्त होकर शब्दों का निर्माण करते हैं।)
एकासे का
कंड्डो =ड् + ड, क् + कचोक्ख: =च् + खकुक्क =क् + क
र’ एंड हरह ही जुटुरका र ई।
कुँडुख़ नू एंड ती बग्गे इदातो मूंद हरह गहि जुटुरका हूँ र’ ई, एकासे का
एम्बा=म्+म्+ब जुटुरका र’ ई,
सम्म्बा=म्+म्+बतुम्बा=म्+म्+बमंज्जकी=न्+ज्+जमंड्डी=न+ड्+डपिंज्जका=न्+ज्+ज
तोड़ घी फुरचअना अड्डा (वर्णों का उच्चारण स्थान ) :
बई गहि एक चोक्ख ती तोड़ गहि फुरचअना मनी, आ चोक्ख नोड़ घी ‘फुरचअना अड्डा’ बातारई । (मुख के जिस भाग से वर्ण का उच्चारण किया जाता है, वह भाग वर्ण का उच्चारण स्थान’ कहा जाता है)
फुरचअना अड्डा सोये मनी :
(उच्चारण स्थान 6 होता है)
फुरचअना अड्डा:
- मेलखा (कंठ)
- तवला/ तलवा (तालु)
- कवला (मूर्द्धा)
- पल्ल (दंत) ग
- सुमड़ा / लेवटो / चोम्मे (ओष्ठ)
- मंडता (नासिक)
- मेलखा- एका तोड़ ही फुरचरना मेलखा ती मनी: अ, आ, क खंदहा अरा ह, ख।
- नवला/तला -एकदा गहि फुरचरना तवला/तलवा ती मनी – इ, ई, च खंदहा अरा य।
- कवला-एकदा गहि फुरचरना कवला ती मनी ट खंदहा अरा र
- पल्ल-एकदा गहि फुरचरना अड्डा पल्ल मनी त खंदहा, ल अरा स –
- सुमड़ा- एकदा ही फुरचना सुमड़ा ती मनी प खंदहा, उ, ऊ –
- मुंइता- एका तोड़ गहि फुरचरना बइता पल्ल, सुमड़ा संग्गे मुंइ गहि हूँ सहड़ा हुरई – ङ, अ, ण, न, म, टिका (*) अरा चँद्दोटिका ( ँ ) एनेम।
फुरचअना अड्डा | तोड़ (वर्ण) |
---|---|
मेलखा | अ, आ, क, ख, ग, घ, ङ, ह, ख़ |
तवला/तलवा | इ, ई, च, छ, ज, झ, अ, य |
कवला | ट, ठ, ड, ढ, ण, र, ड़, ढ़ |
पल्ल | त, थ, द, ध, न, ल, स |
सुमड़ा | उ, ऊ, प, फ, ब, भू, म, व |
मुता | ङ, अ, ण, न, म |
मेलखा + तवला | ए, ए |
मेलखा + सुमड़ा | ओ, ओ |
कुँडुख कत्था (भाषा) नू सुपट-सुपट टूड़ा बचआ गे एकासे फुरचाई अदिन थिथाबअना मनी।
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